Sunday, April 29, 2012

मैं तो...वज़ूद अपना मिटाता रहा !!!
















कुछ यादेँ हैं पास मेरे... 
उन्ही को मैं याद करता हूँ 
साधारण से हैं शब्द मेरे.. 
उन्ही में मैं बात करता हूँ||  

---अकेला

दिल अपना जलाता रहा 
उनको मैं बहलाता रहा

जब भी रूठा मुझसे 
मैं उसको मनाता रहा 

खुश हो जाये वो मुझसे 
खुद को मैं रुलाता रहा 

हो नो जाये अनहोनी कहीं 
सोच उम्र-भर घबराता रहा 

सो जाये वो सुकून से 
अपने को जगाता रहा

कभी तडपा जो दिल मेरा 
प्यार से उसको सहलाता रहा 

लाखों बना के बहाने 
दिल को बहकाता रहा 

उसको आ जाये सुकून 
दिल अपना तड़पाता रहा

दूर से दिखा के मंजिल 
वो उम्र-भर भटकाता रहा

बढ़ के लगाया गले उसको 
वो दूर मुझको हटाता रहा

खुशी  में उसकी, मैं तो 
वज़ूद अपना मिटाता रहा 
   
फिर भी हुआ वो न मेरा 
लाख 'अकेला 'मैं समझाता रहा ||


Sunday, April 22, 2012

हैं सबसे मधुर वो गीत ,जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं ....

जब हद्द से गुज़र जाती है खुशी ,आँसू भी छलकते आते हैं!!!

यादेँ.....१९५३ की ...उम्र सिर्फ ११ वर्ष ,खेलने ,कूदने ,खाने-पीने और पढ़ने के दिन ....
मगर गीत ऐसे पसंद ...क्यों ..पता नही ...शायद तलाश... किसी से अपनेपन की ....
तलाश ज़ारी है ....आज भी .....

आज अपनी पसंद का... ये गीत आप सब को सुनवा भी रहा हूँ और दिखा भी...
तलत साहब की मखमली आवाज़ में बक्शा ये गीत आज भी जख्मी दिलों पर 
मरहम का काम करता है जैसा मेरे बालपन में ....दुःख भरी अँधेरी रात के बाद 
आने वाली आशाओं से भरी सुबह का सन्देश देता है .....

११ साल की उम्र में भी इस गीत को सुन कर मेरा बालसुलभ मन आशाओं से 
भर जाता था ,चेहरा खुशी से खिल उठता था ..दिल में उमंगों का संचार हो 
जाता था .....आज भी सुनता हूँ तो सुकून से लबरेज़ हो जाता हूँ ......

ब्लागजगत के तनावभरे आज के माहौल में फिर इस गीत को सुना और आप को भी 
सुनाने का दिल चाह तो सुनवा रहा हूँ ......इस उम्मीद ,और इस भावना के 
साथ कि ये सब के दिल को सुकून देगा और आने वाले कल का  खुशियों भरा
और भाईचारे का सुंदर सन्देश भी ......


पहलू में पराये दर्द बसा के 
तू हंसना-हँसाना सीख ज़रा
तूफ़ान से कह दे घिर के उठे
हम प्यार के दीप जलाते हैं...  


जब गम का अँधेरा घिर आए ,
समझो के सवेरा दूर नही 
हर रात का है पैगाम यही 
तारे भी यही दौहराते हैं ..... आगे ....

वर्ष :१९५३ 
फिल्म: पतिता 
गीत: शैलेन्द्र 
संगीत: शंकर-जयकिशन 
गायक : तलत साहब 
कलाकार: देव आनंद और उषा किरण  
अगर देखने में कोई दिक्कत आ रही है ...
 तो आप यहाँ इसे सिर्फ सुन सकते हैं ...
आप सब खूब खुश और स्वस्थ रहें.....
 शुभकामनाएँ!

Wednesday, April 18, 2012

यादों का हसीं कारवाँ....!!!


मीठी यादोँ की याद 
सुहाना काम करती है ,
गुज़रे गुनाहों की याद 
बड़ा परेशान करती है |
--अकेला 

फिर भी .....
यादेँ ...!!! याद करना ज़रूरी हैं...?

यादेँ किसके लिए ....?
यादेँ दिमाग सक्रिय रखने के लिए
यादेँ जिन्दा रहने के लिए
यादेँ मुस्कराने के लिए
यादेँ पछताने के लिए
यादेँ टकराने के लिए
यादेँ दिल बहलाने के लिए
यादेँ रिश्ते निबाहने के लिए
यादेँ वक्त बिताने के लिए
यादेँ आँसू बहाने के लिए
यादेँ रुलाने के लिए....
यादेँ कैसी-कैसी ...?
यादेँ चाही ,यादेँ अनचाही
यादेँ पूरी ,यादेँ अधूरी
यादेँ अच्छी ,यादेँ बुरी
यादेँ सुखी ,यादेँ दुखी
यादेँ हसीन,यादें खुशगवार
यादेँ गमगीन ,यादें बेकार....
यादेँ किस किस की ...?
यादेँ चहकने की ,यादें बहकने की
यादेँ बिदकने की. यादेँ सिसकने की
यादें रूठने की ,यादेँ मनाने की
यादें रोने की,यादें सोने की
यादें गर्मी की, यादें सर्दी की
यादें जवानी की ,यादें बुढ़ापे की
यादेँ बचपन की ,यादेँ पचपन की
यादेँ हों ६९ की या फिर चाहे ७० की ||

मार्च २०१२ को मैंने ७० साल पुरे कर 
लिए हैं ...:-)))
आप सब से अपने स्वास्थ्य के लिए दुआ 
मांगता हूँ ....
आप सब के स्वास्थ्य और खुशी की कामना 
करता हूँ .....

अशोक"अकेला"


Friday, April 13, 2012

दिल की बात ...सिर्फ आप के लिए ...!!!

माना  कि आप जैसा समझदार नही हूँ मैं 
यह भी सच है'अनपढ़' हूँ,होनहार नहीं हूँ मैं 
करनी और कथनी से हमेशा कतराया हूँ मैं 
इस लिए हर तरफ से ठोकर खाया हूँ मैं 
अपनी छाती से हाथी गुज़ार सकता हूँ मैं 
काटने वाली चींटी से बहुत घबराया हूँ मैं ...

अहसास महसूस करने वालों से 
बहुत मान पा जाता हूँ मैं 
बिन अहसास, पढे-लिखे लोगों से
 बहुत घबराया हूँ मैं ...

इस ब्लॉग की  दुनिया को
 बहुत कुछ जान गया हूँ मैं 
इन आभासी रिश्तों में ,अपने जैसों की
 तलाश में आया हूँ मैं...

मेरा लिखा पढ़ो,आप की मर्ज़ी
 न पढ़ो  आप की मर्ज़ी 
खुद बोल कर अपने से 
खुद ही भूल जाता हूँ मैं 
इस लिए अपने भूले को याद रखने के लिए
 यहाँ पर लिखने आया हूँ मैं ...

जो चाहे, हर उसके लिए; बाहें मेरी हैं खुली 
हर एक पे प्यार अपना 
आशीर्वाद! लुटाने आया हूँ मैं  ...

करनी और कथनी से 
बहुत कतराता हूँ मैं 
इस लिए किसी को टोकने से 
बहुत शर्माता हूँ मैं ...
अशोक"अकेला"


Tuesday, April 10, 2012

अगर किसी की प्रशंसा नही कर सकते,,,,


तो निंदा से... तो बचा जा सकता है!!! 


आजकल ब्लोगजगत में जो घमासान मचा 
हुआ है ...एक दूसरे पर लेख लिख कर ...
तरह-तरह की टिप्णियाँ सजी हुई... पढ़ने को 
मिल रही हैं .....जिसमें ब्लोगजगत की 
नामचीन हस्तियाँ शामिल हैं ....आभासी रिश्तों के 
आपसी प्यार का बंधन देखने को मिला ....


वो सब पढ़ कर दिल ने जो महसूस किया ...
.वो अहसास यहाँ लिख करअपने दिल का
 बोझ हल्का करने की कोशिश है ये सिर्फ.....  
 इससे ज्यादा कुछ नही .....


मैं तो यहाँ सिर्फ आप को अपना स्नेह 
और आशीर्वाद देने आया हूँ ...और 
आपसे कुछ सीखने ,जो मैं सीख रहा हूँ....
और वो कोशिश ज़ारी है और रहेगी ....


न मेरा किसी से द्वेष न गिला,न शिकवा 
और न शिकायत .....मैं तो यूँ ही अपनी 
यादेँ यहाँ लिख कर अपना समय भी 
काटूँगा और दिल बहलाने की कोशिश 
भी करता रहूँगा .....!!!


आप सब जहां है जैसे हैं .....
सब खुश और स्वस्थ रहें !
शुभकामनाएँ ! 

जो मेरे दिल ने ,महसूस किया....
उसे मैंने अपने दिल से लिखा...
बस और कुछ नही ....

इन आभासी रिश्तों से कैसा लगाव 
जो जुगनू की तरह चमक जाते है 

ये तो हैं  पानी के वो बुलबुले 
पल में बनते हैं ,पल में टूट जाते हैं ||

मैं हूँ कुँए का मेंडक ,मुझको 
कुँए में ही रहने दो ,जिस दिन 
डूब जाऊंगा ,पल में निकल आऊंगा
 
तुम्हारा समंदर तुम्हे मुबारक ,
जिस दिन डूब जाओगे ,सदियों न 
निकल पाओगे ||

दुआ करें, मेरी यादोँ का सफ़र
यूँ ही ज़ारी रहे ...
मेरी यादेँ ,मेरी उम्र पर 
सदा तारी रहें ..... 
--अकेला 





Friday, April 06, 2012

याद आ गया कोई ....

मैं लगा रहा था उनको गले 
वो बना रहें थे ,मुझसे दुरी 
मेरी तो फ़ितरत ही ऐसी है 
होगी कुछ उनकी भी मज़बूरी |
 ----अशोक"अकेला"



-----अकेला 

Tuesday, April 03, 2012

अज़नबी शहर के,अज़नबी रास्ते...

मेरी तन्हाई पर  मुस्कराते रहे!!!


यादों....के अपने झरोखे से आज,राजस्थान 
के इन हुसैन बंधुओ को सुनना अपने आप 
में सुकून की बात है| इन बंधुओ की जुगल-बंदी 
भी अपने आप में एक मिसाल है|


ये भाई ज्यों-ज्यों अपने गीत,गज़ल सुनाते जाते हैं,
सुनने वाला इनके साथ-साथ उसी, गजल के अल्फाजों 
के मूड में ढलता जाता है....


एक अज़नबी, शहर ,अज़नबी, शहर की अज़नबी
सडकें ,अँधेरी रात का सूनापन और तन्हा रास्ते 
सड़क के दोनों किनारों पर ,जलती मद्धम दूर तक 
नज़र आती रौशनियाँ ....


और उनके बीच चलता एक अकेला  अज़नबी
मुसाफ़िर,अपनी अन्जान मंजिल की तलाश में !!!
तब कोई अपना याद आ जाता है और दिल से 
ये आवाज़ निकलती है ..... 


अज़नबी शहर के अज़नबी रास्ते ,
मेरी तन्हाई पर  मुस्कराते रहे....   
मैं बहुत दूर तक यू ही चलता रहा 
तुम बहुत देर तक याद आते रहे |


अज़नबी शहर के अज़नबी रास्ते ,
मेरी तन्हाई पर  मुस्कराते रहे....

कल कुछ ऐसा हुआ ,मैं बहुत थक गया 
इस लिए सुन के भी अनसुनी कर गया 
कितनी यादों के भटके हुए कारवाँ 
दिल के जख्मों के दर खटखटाते रहे


अज़नबी शहर के अज़नबी रास्ते ,
मेरी तन्हाई पर  मुस्कराते रहे....

जहर मिलता रहा ,जहर पीते रहे 
रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे 
जिन्दगी भी हमें आज़माती रही 
और हम भी उसे आजमाते रहे 


अज़नबी शहर के अज़नबी रास्ते ,
मेरी तन्हाई पर  मुस्कराते रहे....

सख्त हालात के तेज़ तूफ़ान में 
घिर गया था हमारा ज़नूने वफ़ा.
हम चिरागे तमन्ना जलाते रहे 
वो चिरागे तमन्ना बुझाते रहे 


अज़नबी शहर के अज़नबी रास्ते ,
मेरी तन्हाई पर  मुस्कराते रहे....
उस्ताद अहमद हुसैन ,उस्ताद महोमद हुसैन 




Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...