इक चक्कर लगाने का मन है
अपने बीते सुहाने दिनों का
आज फिर उदास है दिल अपना
चलो ज़रा यादों को बुला लेता हूँ .....
कोई सीखे ज़रा इन भूली यादों से
वफ़ा क्या है ,कैसे निभाई जाती है
जब भी फुर्सत हो तुमे, बुला लो इनको
ये बिन कुछ पूछे ,बस दौड़ी चली आती हैं
उदास दिल को बहलाने चली आएँगी
अकेले हो साथ निभाने चली आएँगी
ग़र मिल गया जब भी कभी साथ तुमे
चुपचाप मुड़ के ये वापस चली जायेंगी
कभी शिकवा भी न करेंगी. ये तुमसे
कहाँ रहते हो आजकल इतने गुम से
जब परछाई भी न देगी, साथ तुम्हारा
ये तब भी रहेंगी सहारा, बनके तुम्हारा
न ज़रूरत हो तुमे ,ये पास भी नही फटकती
कोने में चुपचाप पड़ी हैं ,कभी नही खटकती
ये वो हैं जिन्हें तुम छोड़ के, आगे बढ़ आये
तब से पड़ी हैं राहों में, पुकारो ! इनको ये चली आयें .....
---अशोक'अकेला'