Sunday, October 23, 2016

टूटे रिश्तों को...जोड़ लेता हूँ !!!

जिन्दगी के टूटे सिरों को 
मैं फिर से जोड़ लेता हूँ, 
ग़मों के बिछोने पर 
ख़ुशी की चादर ओड़ लेता हूँ... 
---अशोक 'अकेला' 

टूटे रिश्तों को...जोड़ लेता हूँ !!!

 अपने हौंसलो से, होड़ लेता हूँ
 मिले महोब्बत, निचोड़ लेता हूँ

 दुनियां के झूठे, रीति-रिवाजो से
 मुस्करा , मुहँ को मोड़ लेता हूँ

 अपने ग़मों के, बिछोने पर
 ख़ुशी की चादर, ओड़ लेता हूँ

 उलझी जिन्दगी, की डोर को 
 हाथ से ख़ुद, तोड़ लेता हूँ

 अब तो आदत, सी हो गई है
 टूटे रिश्तों को, जोड़ लेता हूँ

 ज़माने संग, चल सकता नही अब
 बस 'अकेला' सपनों में, दोड़ लेता हूँ... 

अशोक'अकेला'

Sunday, May 08, 2016

सुना है ...आज माँ दिवस है ???

कहाँ...मेरी है माँ ???
कितना प्यारा था बचपन 
कितना न्यारा था  बचपन
जब प्यारी सी माँ के लिए 
हम सब इक-दूजे से लड़ते थे 
ऊँची आवाज़ में झगड़ते थे 
ये मेरी है माँ ,ये मेरी है माँ 

आज हम भी वही माँ भी वही
बस वो प्यारा, सा बचपन नही
हो गये आज हम सब जवां
वक्त छोड़ गया पीछे निशां
हम आज भी लड़ रहे है 
हम आज भी झगड़ रहे हैं

ले रख ले तू ही, इसे अब रख  
सब एक-दूजे से कहते हैं 
ये तेरी है माँ ,ये तेरी है माँ 
और मैं बचपन से पूछ रहा हूँ 
मुझे भी बताओ ,कहाँ मेरी है माँ ......

--अशोक'अकेला'


Wednesday, April 27, 2016

अंगूठी...में जड़ा वो जादू का पत्थर .....

कौन रखता है याद , गुज़रे वक्त की बात 
ये ही वक्त है यादों का ,गुज़रे वक्त की बातों का.... 
 --अशोक'अकेला'
अंगूठी...में जड़ा वो जादू का
पत्थर .....
मासूम बचपन का सच .....
गली में खेलते हुए किसी से सुना ..किसी के पास जादू की अंगूठी है 
और वो उसमें किसी को भी कुछ भी दिखा सकता है .....

सिर्फ एक आने में .....मुझे भी अपनी माँ को देखने की इच्छा हुई ..
मैंने उसे कभी देखा ही नही था .....मैंने उसको अपना एक आना दिया ..
(जो मेरे दो दिन का बचाया जेब खर्च था )

उसने अपने दोनों हाथों की दिवार मेरी आँखों पर खड़ी करके...और एक टक
उसकी उंगुली और अंगूठे में पकड़ी जादू की अंगूठी की तरफ देखने कहा...
मैंने वैसा ही किया...वो बार-बार पूछ रहा था दिखाई दिया ...और मैं नही ..नही 
बोले जा रहा था ....कुछ दिखे तो हाँ कहूँ.........

एक दम से वो बोला .....जो सच्चे मन से याद करेगा ...और जो अपनी माँ 
को दिल से प्यार करता होगा बस उसे ही दिखाई देगा ..दुसरे को कभी नही .....
 बस.......मुझे एक दम से माँ के दर्शन हो गये...मैं बोल उठा हाँ हाँ माँ दिख गयी...
आप होते तो आप को भी दिख जाता??? .....वो बचपन का जादू !!!! 

 --अशोक'अकेला'

Tuesday, February 23, 2016

मेरी वो आरज़ू......जो हो सकी न पूरी ????





लगा के बेटियों को, गले से है हँसाया जाता
 न इसके के बदले, कभी भी है रुलाया जाता
 बेटो में देखता बाप, अपने है बचपन की छाया
मिलता बुढ़ापे में सुकून, पा कर है इनका साया.....


मेरी वो आरज़ू......जो हो सकी न पूरी ???


काश! मैं भी माँ के आँचल की, छाया में सोता 
 खूब जी भर खिलखिलाता, फिर कभी खुल के रोता
 पर ऐसा हो न सका ... 

. काश! मेरी भी कोई छोटी बड़ी, एक बहन होती
 फेर सर पे ममता का हाथ मेरे, वो खूब रोती
 पर ऐसा हो न सका ...

 काश! मेरा भी कोई, जो भाई तो होता
 रख के सर जिसके कंधे पर, मैं खूब रोता 
पर ऐसा हो न सका ...

काश! वो दोस्त मेरा, जो आज भी होता 
 लगा सीने से मुझे, मेरे जख्म धोता

 पर ऐसा हो न सका ..... ????

--अशोक 'अकेला' 

Thursday, February 04, 2016

कितना अब और इंतज़ार करूँ मैं...???


हद हो गई इंतज़ार की ....इधर तो कोई 
झाँक के भी राज़ी नही लगता ...किसी को 
क्या कहें ..यहाँ अपना भी ये ही हाल है ..इधर आते
आते आज छे महीने होने को आ रहे हैं ???पता नही 
क्यों ...पर यहाँ जैसा अपनापन कहीं नही ..यहाँ आ कर 
ऐसा लगता है जैसे भूला भटका शाम को अपने घर आ 
जाये ....और भूला न कहलाये ....
फेस बुक तो है...जब तक आबाद 
ब्लॉग तो रहेगा ..हमेशा ज़िन्दाबाद||
कितना अब और इंतज़ार करूँ मैं...???
 पूछता तो हूँ हमेशा ...फिर बार बार करूँ ....
 आरज़ू है मेरी तेरा ,  मैं 
दीदार करूँ

 तू न मिले मुझसे, मैं 
 इसरार करूँ 

 तू निबाहे न वादा , मैं 
 ऐतबार करूँ 

 तू आये गी अभी, मैं
 इंतज़ार करूँ 

 तू चाहे न करे प्यार, मैं 
 बार-बार करूँ 

 तू उठवाये मुझसे कसमें , मैं
 इकरार करूँ

 अब तो आजा तुझसे, मैं 
 प्यार करूँ

 माने न तू मुझको अपना , मैं
 जाँ निसार करूँ

 आखिर इक अदना सा इंसान , मैं 
 कितनी मनुहार करूँ ..???

अशोक 'अकेला '



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